किसान- सोहन लाल द्विवेदी
किसान- सोहन लाल द्विवेदी ये नभ-चुम्बी प्रासाद-भवन, जिनमें मंडित मोहक कंचन, ये चित्रकला-कौशल-दर्शन, ये सिंह-पौर, तोरन, वन्दन, गृह-टकराते जिनसे विमान, गृह-जिनका सब आतंक मान, सिर झुका समझते धन्य प्राण, ये आन-बान, ये सभी शान, वह तेरी दौलत पर किसान ! वह तेरी मेहनत पर किसान ! वह तेरी हिम्मत पर किसान! वह तेरी ताक़त पर किसान ! ये रंग-महल, ये मान-भवन, ये लीलागृह, ये गृह-उपवन, ये क्रीड़ागृह, अन्तर प्रांगण, रनिवास ख़ास, ये राज-सदन, ये उच्च शिखर पर…