32 मात्रिक छंद (हम और तुम)-मात्रिक छंदों की कविताएँ-बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Basudev Agarwal Naman
बम बम के हम उद्घोषों से, धरती गगन नाद से भरते।
बोल ‘बोल बम’ के पावन सुर, आह्वाहन भोले का करते।।
पर तुम हृदयहीन बन कर के, मानवता को रोज लजाते।
बम के घृणित धमाके कर के, लोगों का नित रक्त बहाते।।
हर हर के हम नारे गूँजा, विश्व शांति को प्रश्रय देते।
साथ चलें हम मानवता के, दुखियों की ना आहें लेते।।
निरपराध का रोज बहाते, पर तुम लहू छोड़ के लज्जा।
तुम पिशाच को केवल भाते, मानव-रुधिर, मांस अरु मज्जा।।
अस्त्र हमारा सहनशीलता, संबल सब से भाईचारा।
परंपरा में दानशीलता, भावों में हम पर दुख हारा।।
तुम संकीर्ण मानसिकता रख, करते बात क्रांति की कैसी।
भाई जैसे हो कर भी तुम, रखते रीत दुश्मनों जैसी।।
डर डर के आतंकवाद में, जीना हमने तुमसे सीखा।
हँसे सदा हम तो मर मर के, तुमसे जब जब ये दिल चीखा।।
तुम हो रुला रुला कर हमको, कभी खुदा तक से ना डरते।
सद्विचार पा बदल सको तुम, पर हम यही प्रार्थना करते।।
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32 मात्रिक छंद विधान –
32 मात्रिक छंद चार पदों का सम मात्रिक छंद
है जो ठीक चौपाई का ही द्विगुणित रूप है।
इन 32 मात्रा में 16, 16 मात्रा पर यति होती
है तथा दो दो पदों में पदान्त तुक मिलाई
जाती है। 16 मात्रा के चरण का विधान ठीक
चौपाई छंद वाला ही है। यह राधेश्यामी छंद
से अलग है। राधेश्यामी छंद के 16 मात्रिक
चरण का प्रारंभ त्रिकल से नहीं हो सकता
उसमें प्रारंभ में द्विकल होना आवश्यक है
जबकि 32 मात्रिक छंद में ऐसी बाध्यता नहीं है।
इस छंद के अंत में जब भगण (211)
रखने की अनिवार्यता रहती है तो यह
समान सवैया या सवाई छंद के नाम
से जाना जाता है।