होली (१)-कविता -स्वागता बसु -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Swagata Basu
इस बार नही कपोलें फूटी
न मौसम में रंगोली है
जाने कैसा फागुन आया है
जाने कैसी होली है
ओ पलाश! क्यों रंग फीका है?
क्या शहर तुझे नही भाया
क्या इसी लिए मंजरी से मिलने
मकरंद अभी तक नही आया?
क्या धूल, धुँए, और भाग-दौड़ में
दिलों के रंग भी निखरेंगे?
इस चौखट से उस चौखट तक
अबीर गुलाल फिर बिखरेंगे?
क्या फुरसत के पल फिर होंगे
फिर दिसत गले लग जाएंगे
क्या ढोलक की थापों पर सब
फिर से झूमें गाएंगे?
क्या कहते हो! गाँव चलें फिर
वहाँ हंसी ठिठोली है
वहाँ दिलों पर रंग चढ़ेगा
वहीं असल मे होली है।।
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