होली पिचकारी-होली कविता -नज़ीर अकबराबादी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Nazeer Akbarabadi
हाँ इधर को भी ऐ गुंचादहन पिचकारी ।
देखें कैसी है तेरी रंगबिरंग पिचकारी ।।१।।
तेरी पिचकारी की तक़दीद में ऐ गुल हर सुबह ।
साथ ले निकले है सूरज की किरण पिचकारी ।।२।।
जिस पे हो रंग फिशाँ उसको बना देती है ।
सर से ले पाँव तलक रश्के चमन पिचकारी ।।३।।
बात कुछ बस की नहीं वर्ना तेरे हाथों में ।
अभी आ बैठें यहीं बनकर हम तंग पिचकारी ।।४।।
हो न हो दिल ही किसी आशिके शैदा का ‘नज़ीर’ ।
पहुँचा है हाथ में उसके बनकर पिचकारी ।।५।।