है साहस तो बढ़ना कभी-कविता -सरवरिन्दर गोयल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sarvarinder Goyal
है साहस तो
बढ़ना कभी
औरत के देह
से भी आगे,
जिसकी अस्थि-मज्जा तक
तुम भींच चुके
देह की पिपासा
के बाहर स्त्रियों
का मन है
जहाँ तुम्हारे कदम
लड़खड़ा जाते हैं
क्योंकि
तुम्हें वहाँ
तुम्हारे खोखले आदर्शों
को चुनौती मिलती है
पर एक बार
जरूर घुसना
उस मन में
तुम्हें वहाँ एक
अँधा, गहरा, कुआँ मिलेगा
जिसमें अनगिनत सपने
अरमान, अहसास
कीड़े-मकोड़े की तरह
कुलबुला रहे होंगे
उनको कभी धूप नहीं मिली
मर्दों के अभिमान के
नीचे कभी
वो पनप नहीं पाए
उग नहीं पाए
खिल नहीं पाए
तुम्हें कुछ देर
शर्म तो आएगी
ज्यादा संवेदनशील हो
तो ग्लानि भी आएगी
और गर इंसान हो
तो शायद रोना भी आएगा
पर कुछ ही देर बाद
जब तुम्हारा
पौरुष हावी होगा
तुम मुँह फेर कर
चल दोगे
और
स्त्रियों के मन की
जिस यात्रा पे तुम निकले थे
हमेशा की तरह
अधूरी ही रह जाएगी।
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