हार्ट अटैक (रुख़सत)-सरे-वादी-ए-सीना -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Faiz Ahmed Faiz
दर्द इतना था कि उस रात दिले-वहशी ने
हर रगे-जां से
उलझना चाहा
हर बुने-मू से टपकना चाहा
और कहीं दूर से तेरे सहने-चमन में गोया
पत्ता-पत्ता मेरे अफ़सुरदा लहू में घुलकर
हुस्ने-महताब से आज़ुरदा नज़र आने लगा
मेरे वीराना-ए-तन में गोया
सारे दुखते हुए रेशों की तनाबें खुलकर
सिलसिलावार पता देने लगीं
रुख़सते-काफ़िला-ए-शौक की तैयारी का
और जब याद की बुझती हुई शमयों में नज़र आया कहीं
एक पल आख़िरी लमहा तेरी दिलदारी का
दर्द इतना था कि उससे भी गुज़रना चाहा
हमने चाहा भी, मगर दिल न ठहरना चाहा
१९६७