हाय, नहीं अब कोई चारा-नदी किनारे-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
हाय, नहीं अब कोई चारा!
पथ के पद-चिन्हों पर चल-चल,
ढूँढ़ रहा था खोई मंज़िल,
पथिक एक, पर मिटा दिया आंधी ने वह भी एक सहारा!
हाय, नहीं अब कोई चारा!
इसके भी पद-चिन्ह हैं मिटे,
और बिछ गये पथ में कांटे,
लौट सकेगा पीछे भी कैसे भूला पंथी बेचारा!
हाय, नहीं अब कोई चारा!
तप के बादल भी घिर आये,
कौन कहे यह कब फट पायें,
यों ही पथ पर भटक-भटक कर कट जायेगा जीवन सारा!
हाय, नहीं अब कोई चारा!
Pingback: नदी किनारे-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj – hindi.shayri.page