हाइकु -गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
ओस की बूंद
फूल पर सोई जो
धूल में मिली
वो हैं अपने
जैसे देखे हैं मैंने
कुछ सपने
किसको मिला
वफा का दुनिया में
वफा हीं सिला
तरना है जो
भव सागर यार
कर भ्रष्टाचार
क्यों शरमाए
तेरा ये बांकपन
सबको भाए
राजनीती है
इन दिनों उद्योग
इसको भोग
सोने की कली
मिटटी भरे जग में
किसको मिली
मन-मनका
पूजा के समय ही
कहीं अटका
घट-मटका
रास्ता न जाने कोई
पनघट का
ओ मेरे मीत
गा रे हरपल तू
प्रेम के गीत
कल के फूल
मांग रहे हैं भीख
छोड़ स्कूल
कैसे हो न्याय
बछड़े को चाटे जब
खुद ही गाय
जीवन का ये
अरुणाभ कमल
नेत्रों का छल
जीना है तो
नहीं होना निराश
रख विश्वास
बिखरी जब
रचना बनी एक
नवल सृष्टि
सिमटी जब
रचना बनी वही
सृष्टि से व्यष्टि
मैंने तो की है
उनसे यारी सदा
जो हैं अकेले
अनजाने हैं वे
खड़े-खड़े दूर से
देखें जो मेले
मन है कामी
कामी बने आकामी
दास हो स्वामी
सृष्टि का खेल
आकाश पर चढ़ी
उल्टी बेल
दुःख औ सुख
जन्म मरण दोनों
हैं यात्रा क्रम
पंचम से हैं
सप्तम तक जैसे
सुर संगम
गरीबी है ये
अमीरी षड्यन्त्र
और ये तन्त्र
सेवा का कर्म
सबसे बड़ा यहाँ
मानव-धर्म
गुनिये कुछ
सुनिए या पढ़िये
फिर लिखिए
चलने की है
कल को मेरी बारी
करी तैयारी
जन्म मरण
समय की गति के
हैं दो चरण
वो हैं अकेले
दूर खडे होकर
देखें जो मेले
मेरी जवानी
कटे हुये पंखों की
एक निशानी
हे स्वर्ण केशी
भूल न यौवन है
पंछी विदेशी
किससे कहें
सब के सब दुख
खुद ही सहें
हे अनजानी
जीवन की कहानी
किसने जानी
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