हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ-शायद-ग़ज़लें-जौन एलिया -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaun Elia
हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ
हैं कई हिज्र दरमियाँ जानाँ
राएगाँ वस्ल में भी वक़्त हुआ
पर हुआ ख़ूब राएगाँ जानाँ
मेरे अंदर ही तो कहीं ग़म है
किस से पूछूँ तिरा निशाँ जानाँ
आलम-ए-बेकरान-ए-रंग है तू
तुझ में ठहरूँ कहाँ कहाँ जानाँ
मैं हवाओं से कैसे पेश आऊँ
यही मौसम है क्या वहाँ जानाँ
रौशनी भर गई निगाहों में
हो गए ख़्वाब बे-अमाँ जानाँ
दर्द-मंदान-ए-कू-ए-दिलदारी
गए ग़ारत जहाँ तहाँ जानाँ
अब भी झीलों में अक्स पड़ते हैं
अब भी नीला है आसमाँ जानाँ
है जो पुरखों तुम्हारा अक्स-ए-ख़याल
ज़ख़्म आए कहाँ कहाँ जानाँ