हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar
हमारे शौक़ की ये इन्तहा थी
क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी
बिछड़ के डार से बन-बन फिरा वो
हिरन को अपनी कस्तूरी सज़ा थी
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मिरे अंजाम की वो इब्तदा थी
मुहब्बत मर गई मुझको भी ग़म है
मिरे अच्छे दिनों की आशना थी
जिसे छू लूँ मैं वो हो जाये सोना
तुझे देखा तो जाना बद्दुआ थी
मरीज़े-ख़्वाब को तो अब शफ़ा है
मगर दुनिया बड़ी कड़वी दवा थी
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