हमको नहीं दी कोई आज भी-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh
कटा हाथ, करता है आर्तनाद जंगल में
आर्तनाद करता है कटा हाथ — गारो पहाड़ में
सिन्धु की दिशाओं में करता है आर्तनाद कटा हाथ
कौन किसे समझाए और
लहरें समुद्र की, दिखातीं तुम्हें हड्डियाँ हज़ारों में
लहराते खेतों से उठ आतीं हड्डियाँ हज़ारों
गुम्बद और मन्दिर के शिखरों से, उग आतीं हड्डियाँ हज़ारों
आँखों तक आ जातीं, करतीं हैं आर्तनाद
सारे स्वर मिलकर फिर खो जाते जाने कहाँ
कण्ठहीन सारे स्वर
आर्तनाद करते हैं, खोजते हुए वे धड़,
शून्य थपथपाते हुए, खोजते हैं हृत्पिण्ड
पास आ अँगुलियों के
करती है आर्तनाद अँगुलियाँ
नाच देख ध्वंस का
पानी के भीतर या कि बर्फ़ीली चोटियों पर
कौन किसे समझाए और
करते हैं आर्तनाद अर्थहीन शब्द
और सुनते हो तुम भौंचक
हमको नहीं दी कोई आज भी
हमको नहीं दी कोई आज भी
हमको नहीं दी कोई मातृभाषा देश ने ।
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