हटा अल्पविराम, अब जीवन जल्दी-जल्दी ढलता है-अल्पविराम-राजगोपाल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajagopal
यह सोच कर कि अंत नहीं है पास
मन करने लगता है स्मृतियों से रास
रात गयी सूनी, उसका किसे है आभास
थका पथिक, मरीचिका मे दिशाहीन चलता है
हटा अल्पविराम, अब जीवन जल्दी-जल्दी ढलता है
समय के विस्तार मे कितनी बची है आशा
सोचता हूँ क्या उसकी भी होगी उतनी प्रत्याशा
प्रणय रोये मूक अकेले, नहीं है उसकी कोई भाषा
शिथिल हुये कर्म, अब प्रणय की कैसी चंचलता है
हटा अल्पविराम, अब जीवन जल्दी-जल्दी ढलता है
अतीत मरा, अब कल पर कौन विकल
हठीले अधर, होते अब किसके हित चंचल
उर पर पत्थर रख कर रतजगे रोये कितने पल
कैसा है संबंध, यह प्रश्न दावानल सा जलता है
हटा अल्पविराम, अब जीवन जल्दी-जल्दी ढलता है