स्वयंवर-छोटा सा आकाश-राजगोपाल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajagopal
कल की रात पर लेटा दिन
आज कितना खुश लग रहा है
सबह की हवा भी हंस पड़ी है
जैसे हर पल पहचाना लग रहा है
तुम्हारे बालों का ऐसे झुकना
जैसे हो चढती धूप में घना छाया
बदल रही है तितलियों की दिशा
तुम कोई उर्वशी हो, या आकर्षक माया
कैसे तुम सहज मान गई
बरसों साथ रहने की बात
मैंने कितने संभल कर कहा था तुमसे
डर था कहीं खा न जाऊं मुंह की मात
पर तुम ही चित्रगुप्त की लिखी
मेरी हथेली की रेखा बन उभरी
तुमसे अच्छा और कौन होगा
जो जानता हो ये बात गहरी
अब तो तुम ही प्राण हो
मेरी दृष्टि हो, मन का अम्बर हो
दिशा हो, जीवन की साँसे हो
तुम ही सर्जना हो, अलौकिक स्वयंवर हो