स्वप्न और परिस्थितियाँ-सूर्य का स्वागत -दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar
सिगरेट के बादलों का घेरा
बीच में जिसके वह स्वप्न चित्र मेरा—
जिसमें उग रहा सवेरा साँस लेता है,
छिन्न कर जाते हैं निर्मम हवाओं के झोंके;
आह! है कोई माई का लाल?
जो इन्हें रोके,
सामने आकर सीना ठोंके।