सार-छोटा सा आकाश-राजगोपाल -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rajagopal
चलो आज फिर उन दिनों में
जब हम पहली बार मिले थे
तुम्हे देख कर मन तो उतावला हुआ
पर जाने कब तक होंठ सिले थे
लगा नहीं कि हम कभी साथ हो पाएंगे
तुम श्रृंगार से भरी स्वर्ग की अप्सरा
तुम्हे माँगा था सब कुछ दे कर
पा कर लगा, ये जीवन है कितना गहरा
तुम्हारे आँखों की खुमारी
गालों में स्पर्श की गुनगुनाहट
अधरों पर प्यार का छिपा आगोश
सुनायी देती है,चारों ओर तुम्हारी ही आहट
तुम नहीं तो समय भी स्तब्ध सा
रेंगता है जैसे डरा सा बीमार हो
कल अकेला न जाने कैसा होगा
आज तुम ही तो जीने का सार हो