सारा शहर अपना किये बैठे हो-पंकज पुण्डीर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pankaj Pundir
सारा शहर अपना किये बैठे हो,
कौन था, किससे खफ़ा बैठे हो?
सब शरीफ हैं, तुम ही ख़राब हो,
महफ़िल में किताब लिए बैठे हो?
हमारे सारे राज़ बेपर्दा हैं, सच है,
लास्ट-सीन जो छुपाये बैठे हो?
इश्क़ ने क्या खूब नज़र किया,
तुम गैरों की सफ में जा बैठे हो?
आदमी ठीक ही लगते थे, क्या
हुआ तुमको, क़लम उठा बैठे हो?
आप से तो किसी ने कुछ न माँगा,
अच्छा ख़ासा शहर जला बैठे हो?
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