सांध्य राग-प्राणेन्द्र नाथ मिश्र -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Pranendra Nath Misra
यह जीवन पथ, किस ओर चला
मैं दीप जला कर खोजूं पथ,
जीवन को और वृहत करने
बढ़ चला श्वास का निर्बल रथ।
क्या दीप बुझा कर संध्या का
मैं तम – छाया की ओर बढूं
निर्बल प्रकाश की रश्मि लिए
अंतिम सोपान की ओर चढ़ूं।
दोनो प्रकरण तो एक ही हैं
एक आशा, एक निराशा है,
दो तल के पथ पर चलना ही
शाश्वत, जीवन परिभाषा है।