साँझ के बादल-सात गीत-वर्ष -धर्मवीर भारती-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dharamvir Bharati
ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आती
मंथर चाल।
नीलम पर किरनों
की साँझी
एक न डोरी
एक न माँझी,
फिर भी लाद निरंतर लाती
सेंदुर और प्रवाल!
कुछ समीप की
कुछ सुदूर की,
कुछ चन्दन की
कुछ कपूर की,
कुछ में गेरू, कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल।
ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आती
मंथर चाल।
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