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- 1 एह किनेही दाति आपस ते जो पाईऐ ॥
- 2 आपे साजे करे आपि जाई भि रखै आपि
- 3 जिनी चलणु जाणिआ से किउ करहि विथार
- 4 जिना भउ तिन्ह नाहि भउ मुचु भउ निभविआह
- 5 पहिल बसंतै आगमनि तिस का करहु बीचारु
- 6 मिलिऐ मिलिआ ना मिलै मिलै मिलिआ जे होइ
- 7 नानक अंधा होइ कै रतना परखण जाइ
- 8 रतना केरी गुथली रतनी खोली आइ
- 9 नानक चिंता मति करहु चिंता तिस ही हेइ
- 10 साह चले वणजारिआ लिखिआ देवै नालि
- 11 सिफति जिना कउ बखसीऐ सेई पोतेदार
- 12 वैदा वैदु सुवैदु तू पहिलां रोगु पछाणु
- 13 नानक दुनीआ कीआं वडिआईआं अगी सेती जालि
- 14 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
सलोक -गुरू अंगद देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Angad Dev Ji 3
एह किनेही दाति आपस ते जो पाईऐ ॥
एह किनेही दाति आपस ते जो पाईऐ ॥
नानक सा करमाति साहिब तुठै जो मिलै ॥1॥475॥
आपे साजे करे आपि जाई भि रखै आपि
आपे साजे करे आपि जाई भि रखै आपि ॥
तिसु विचि जंत उपाइ कै देखै थापि उथापि ॥
किस नो कहीऐ नानका सभु किछु आपे आपि ॥2॥475॥
जिनी चलणु जाणिआ से किउ करहि विथार
जिनी चलणु जाणिआ से किउ करहि विथार ॥
चलण सार न जाणनी काज सवारणहार ॥1॥787॥
जिना भउ तिन्ह नाहि भउ मुचु भउ निभविआह
जिना भउ तिन्ह नाहि भउ मुचु भउ निभविआह ॥
नानक एहु पटंतरा तितु दीबाणि गइआह ॥1॥788॥
पहिल बसंतै आगमनि तिस का करहु बीचारु
पहिल बसंतै आगमनि तिस का करहु बीचारु ॥
नानक सो सालाहीऐ जि सभसै दे आधारु ॥2॥791॥
मिलिऐ मिलिआ ना मिलै मिलै मिलिआ जे होइ
मिलिऐ मिलिआ ना मिलै मिलै मिलिआ जे होइ ॥
अंतर आतमै जो मिलै मिलिआ कहीऐ सोइ ॥3॥791॥
नानक अंधा होइ कै रतना परखण जाइ
नानक अंधा होइ कै रतना परखण जाइ ॥
रतना सार न जाणई आवै आपु लखाइ ॥1॥954॥
रतना केरी गुथली रतनी खोली आइ
रतना केरी गुथली रतनी खोली आइ ॥
वखर तै वणजारिआ दुहा रही समाइ ॥
जिन गुणु पलै नानका माणक वणजहि सेइ ॥
रतना सार न जाणनी अंधे वतहि लोइ ॥2॥954॥
नानक चिंता मति करहु चिंता तिस ही हेइ
नानक चिंता मति करहु चिंता तिस ही हेइ ॥
जल महि जंत उपाइअनु तिना भि रोजी देइ ॥
ओथै हटु न चलई ना को किरस करेइ ॥
सउदा मूलि न होवई ना को लए न देइ ॥
जीआ का आहारु जीअ खाणा एहु करेइ ॥
विचि उपाए साइरा तिना भि सार करेइ ॥
नानक चिंता मत करहु चिंता तिस ही हेइ ॥1॥955॥
साह चले वणजारिआ लिखिआ देवै नालि
साह चले वणजारिआ लिखिआ देवै नालि ॥
लिखे उपरि हुकमु होइ लईऐ वसतु सम्हालि ॥
वसतु लई वणजारई वखरु बधा पाइ ॥
केई लाहा लै चले इकि चले मूलु गवाइ ॥
थोड़ा किनै न मंगिओ किसु कहीऐ साबासि ॥
नदरि तिना कउ नानका जि साबतु लाए रासि ॥1॥1238॥
सिफति जिना कउ बखसीऐ सेई पोतेदार
सिफति जिना कउ बखसीऐ सेई पोतेदार ॥
कुंजी जिन कउ दितीआ तिन्हा मिले भंडार ॥
जह भंडारी हू गुण निकलहि ते कीअहि परवाणु ॥
नदरि तिन्हा कउ नानका नामु जिन्हा नीसाणु ॥2॥1239॥
वैदा वैदु सुवैदु तू पहिलां रोगु पछाणु
वैदा वैदु सुवैदु तू पहिलां रोगु पछाणु ॥
ऐसा दारू लोड़ि लहु जितु वंञै रोगा घाणि ॥
जितु दारू रोग उठिअहि तनि सुखु वसै आइ ॥
रोगु गवाइहि आपणा त नानक वैदु सदाइ ॥2॥1279॥
नानक दुनीआ कीआं वडिआईआं अगी सेती जालि
नानक दुनीआ कीआं वडिआईआं अगी सेती जालि ॥
एनी जलीईं नामु विसारिआ इक न चलीआ नालि ॥2॥1290॥
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