समझो भी-शरीर कविता फसलें और फूल-भवानी प्रसाद मिश्र-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhawani Prasad Mishra
कई बार लगता है
अकेला पड़ गया हूँ
साथी-संगी विहीन
क्या हाने हनूँगा
तुम्हारे मन के लायक़
मैं कैसे बनूँगा
शक्ति तुमने दी है मगर
साथी तो चाहिए आदमी को
आदमी की इस कमी को समझो
उसके मन की इस नमी को समझो
जो सार्थक नहीं होती बिन साथियों के !