सब चले जाओ मुझ में ताब नहीं-गुमाँ-ग़ज़लें-जौन एलिया -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Jaun Elia
सब चले जाओ मुझ में ताब नहीं
नाम को भी अब इज़्तिराब नहीं
ख़ून कर दूँ तिरे शबाब का मैं
मुझ सा क़ातिल तिरा शबाब नहीं
इक किताब-ए-वजूद है तो सही
शायद इस में दुआ का बाब नहीं
तू जो पढ़ता है बू-अली की किताब
क्या ये आलिम कोई किताब नहीं
अपनी मंज़िल नहीं कोई फ़रियाद
रख़्श भी अपना बद-रिकाब नहीं
हम किताबी सदा के हैं लेकिन
हस्ब-ए-मंशा कोई किताब नहीं
भूल जाना नहीं गुनाह उसे
याद करना उसे सवाब नहीं
पढ़ लिया उस की याद का नुस्ख़ा
उस में शोहरत का कोई बाब नहीं