सत्य का निर्माण करती-प्राण गीत-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
सत्य का निर्माण करती स्वप्न की अन्तिम शरण ही ।
दीप अम्बर के बुझाकर विश्व में नित प्रात आता,
छीन कर जीवन धरा का घन गगन में मुस्कराता,
कर हजारों घर तिमिरमय एक जलता दीप सुख का
एक ढलता अश्रु तब जब ज्वाल में जल प्राण जाता,
सृष्टि का संहार करता सृष्टि का नूतन सृजन ही।
सत्य का निर्माण करती स्वप्न की अन्तिम शरण ही।।
यामिनी के अश्रु से धुलती कुसुम-कलि की सुघरता,
अश्रु बनकर ही सदा झरती नयन से प्रीति, कविता,
एक गिरता अश्रु जब बनकर समर्पण पूर्णता का-
मौन हाहाकार कर पाषाण पूजा का पिघलता,
निर्बलों का बल सदा है एक दुर्बल अश्रु-कण ही।
सत्य का निर्माण करती स्वप्न की अन्तिम शरण ही।।
घोर तम की ही दिशा से ज्योति पहली फूटती है,
दग्ध उर की जाग से ही धार जल की छूटती है,
चिर-निराशा से सदा होती उदय आशा सुनहली,
वासना में साधना की नीद सहसा टूटती है,
मुक्ति-पद निर्देश करता विश्व-बन्धन का चरण ही।
सत्य का निर्माण करती स्वप्न की अन्तिम शरण ही।।