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संस्कृत श्लोक-रहीम -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sanskrit Shlok 5
श्लोक
अच्युतच्चरणातरंगिणि शशिशेखर-मौलि-मालतीमाले ।
मम तनु-वितरण-समये हरता देया न में हरिता ।।7।।
(अर्थ)
विष्णु भगवान के चरणों से प्रवाहित होने वाली और महादेव जी के मस्तक पर मालती माला के समान शोभित होनेवाली हे गंगे, मुझे तारने के समय महादेव बनाना न कि विष्णु । अर्थात् तब मैं तुम्हें शिर पर धारण कर सकूँगा। (इसी अर्थ का दोहा सं. 2 भी है।)
बहुभाषा-श्लोक
भर्ता प्राची गतो मे, बहुरि न बगदे, शूँ करूँ रे हवे हूँ ।
माझी कर्माचि गोष्ठी, अब पुन शुणसि, गाँठ धेलो न ईठे ।।
म्हारी तीरा सुनोरा, खरच बहुत है, ईहरा टाबरा रो,
दिट्ठी टैंडी दिलोंदो, इश्क अल् फिदा, ओडियो बच्चनाडू ।।8।।
(अर्थ)
मेरे पति पूर्व की ओर जो गए सो फिर न लौटे, अब मैं क्या करूँ। मेरे कर्म की बात है। अब और सुनो कि गाँठ में एक अधेला भी नहीं है। मुझसे सुनो कि खर्च अधिक है और परिवार भी बहुत है। तेरे देखने को मन में ऐसा हो रहा है कि प्रेम पर निछावर हो जाऊँ । (विरहिणी नायिका इस प्रकार कातर हो रही थी कि किसी ने कहा कि) वह आया है।