संकेत-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh
मुझे याद है तुम्हारा संकेत
मैं ठीक पहुँच ही जाऊँगा समय रहते।
आइने के सामने खड़े होने के बहुत-से बहाने हैं
उन सब को हटाकर
पिछले साल के बाक़ी-बक़ाये में डूबे मन
इन सबको भूलकर
इसके उसके उनके साथ मुलाक़ात हो जाने
बातें कहने-सुनने
इन सबको पोंछकर
दिन-दोपहर की ओट में
पहुँच ही जाऊँगा आज तुम्हारे संकेत की शाम को
भग्न-हाट के थके व्यापारियों के पड़ोस से होकर
गाँव के सिवान के श्मशान में
जहाँ पीपल के झुक आए चेहरे की ओर
टकटकी लगाए देख रहा है
ठण्ड गूँगा जल …