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श्लोक -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 34
आदि मधि अरु अंति
आदि मधि अरु अंति परमेसरि रखिआ ॥
सतिगुरि दिता हरि नामु अम्रितु चखिआ ॥
साधा संगु अपारु अनदिनु हरि गुण रवै ॥
पाए मनोरथ सभि जोनी नह भवै ॥
सभु किछु करते हथि कारणु जो करै ॥
नानकु मंगै दानु संता धूरि तरै ॥1॥523॥
तिस नो मंनि वसाइ
तिस नो मंनि वसाइ जिनि उपाइआ ॥
जिनि जनि धिआइआ खसमु तिनि सुखु पाइआ ॥
सफलु जनमु परवानु गुरमुखि आइआ ॥
हुकमै बुझि निहालु खसमि फुरमाइआ ॥
जिसु होआ आपि क्रिपालु सु नह भरमाइआ ॥
जो जो दिता खसमि सोई सुखु पाइआ ॥
नानक जिसहि दइआलु बुझाए हुकमु मित ॥
जिसहि भुलाए आपि मरि मरि जमहि नित ॥2॥523॥
रामु जपहु वडभागीहो
रामु जपहु वडभागीहो जलि थलि पूरनु सोइ ॥
नानक नामि धिआइऐ बिघनु न लागै कोइ ॥1॥524॥
कोटि बिघन तिसु लागते
कोटि बिघन तिसु लागते जिस नो विसरै नाउ ॥
नानक अनदिनु बिलपते जिउ सुंञै घरि काउ ॥2॥524॥
हरि नामु न सिमरहि साधसंगि
हरि नामु न सिमरहि साधसंगि तै तनि उडै खेह ॥
जिनि कीती तिसै न जाणई नानक फिटु अलूणी देह ॥1॥553॥
घटि वसहि चरणारबिंद
घटि वसहि चरणारबिंद रसना जपै गुपाल ॥
नानक सो प्रभु सिमरीऐ तिसु देही कउ पालि ॥2॥554॥
ऊचा अगम अपार प्रभु
ऊचा अगम अपार प्रभु कथनु न जाइ अकथु ॥
नानक प्रभ सरणागती राखन कउ समरथु ॥1॥704॥
निरति न पवै असंख गुण
निरति न पवै असंख गुण ऊचा प्रभ का नाउ ॥
नानक की बेनंतीआ मिलै निथावे थाउ ॥2॥704॥
रे मन ता कउ धिआईऐ
रे मन ता कउ धिआईऐ सभ बिधि जा कै हाथि ॥
राम नाम धनु संचीऐ नानक निबहै साथि ॥3॥704॥
चिति जि चितविआ
चिति जि चितविआ सो मै पाइआ ॥
नानक नामु धिआइ सुख सबाइआ ॥4॥2॥705॥
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