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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 23
अठे पहर भउदा फिरै
अठे पहर भउदा फिरै खावण संदड़ै सूलि ॥
दोजकि पउदा किउ रहै जा चिति न होइ रसूलि ॥2॥319॥
जाचकु मंगै दानु
जाचकु मंगै दानु देहि पिआरिआ ॥
देवणहारु दातारु मै नित चितारिआ ॥
निखुटि न जाई मूलि अतुल भंडारिआ ॥
नानक सबदु अपारु तिनि सभु किछु सारिआ ॥1॥320॥
सिखहु सबदु पिआरिहो
सिखहु सबदु पिआरिहो जनम मरन की टेक ॥
मुख ऊजल सदा सुखी नानक सिमरत एक ॥2॥320॥
सतिगुरि पूरै सेविऐ
सतिगुरि पूरै सेविऐ दूखा का होइ नासु ॥
नानक नामि अराधिऐ कारजु आवै रासि ॥1॥320॥
जिसु सिमरत संकट छुटहि
जिसु सिमरत संकट छुटहि अनद मंगल बिस्राम ॥
नानक जपीऐ सदा हरि निमख न बिसरउ नामु ॥2॥320॥