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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 18
एको एकु बखानीऐ
एको एकु बखानीऐ बिरला जाणै स्वादु ॥
गुण गोबिंद न जाणीऐ नानक सभु बिसमादु ॥11॥299॥
दुरमति हरी सेवा करी
दुरमति हरी सेवा करी भेटे साध क्रिपाल ॥
नानक प्रभ सिउ मिलि रहे बिनसे सगल जंजाल ॥12॥299॥
तीनि गुणा महि बिआपिआ
तीनि गुणा महि बिआपिआ पूरन होत न काम ॥
पतित उधारणु मनि बसै नानक छूटै नाम ॥13॥299॥
चारि कुंट चउदह भवन
चारि कुंट चउदह भवन सगल बिआपत राम ॥
नानक ऊन न देखीऐ पूरन ता के काम ॥14॥299॥
आतमु जीता गुरमती
आतमु जीता गुरमती गुण गाए गोबिंद ॥
संत प्रसादी भै मिटे नानक बिनसी चिंद ॥15॥300॥
पूरनु कबहु न डोलता
पूरनु कबहु न डोलता पूरा कीआ प्रभ आपि ॥
दिनु दिनु चड़ै सवाइआ नानक होत न घाटि ॥16॥300॥