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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 14
संत सरनि जो जनु परै
संत सरनि जो जनु परै सो जनु उधरनहार ॥
संत की निंदा नानका बहुरि बहुरि अवतार ॥1॥279॥
जहु सिआनप सुरि जनहु
तजहु सिआनप सुरि जनहु सिमरहु हरि हरि राइ ॥
एक आस हरि मनि रखहु नानक दूखु भरमु भउ जाइ ॥1॥281॥
सरब कला भरपूर प्रभ
सरब कला भरपूर प्रभ बिरथा जाननहार ॥
जा कै सिमरनि उधरीऐ नानक तिसु बलिहार ॥1॥282॥
रूपु न रेख न रंगु किछु
रूपु न रेख न रंगु किछु त्रिहु गुण ते प्रभ भिंन ॥
तिसहि बुझाए नानका जिसु होवै सुप्रसंन ॥1॥283॥
आदि सचु जुगादि सचु
आदि सचु जुगादि सचु ॥
है भि सचु नानक होसी भि सचु ॥1॥285॥