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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 12
बहु सासत्र बहु सिम्रिती
बहु सासत्र बहु सिम्रिती पेखे सरब ढढोलि ॥
पूजसि नाही हरि हरे नानक नाम अमोल ॥1॥265॥
निरगुनीआर इआनिआ
निरगुनीआर इआनिआ सो प्रभु सदा समालि ॥
जिनि कीआ तिसु चीति रखु नानक निबही नालि ॥1॥266॥
देनहारु प्रभ छोडि कै
देनहारु प्रभ छोडि कै लागहि आन सुआइ ॥
नानक कहू न सीझई बिनु नावै पति जाइ ॥1॥268॥
काम क्रोध अरु लोभ मोह
काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहमेव ॥
नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव ॥1॥269॥
अगम अगाधि पारब्रहमु सोइ
अगम अगाधि पारब्रहमु सोइ ॥
जो जो कहै सु मुकता होइ ॥
सुनि मीता नानकु बिनवंता ॥
साध जना की अचरज कथा ॥1॥271॥