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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 8
साधू की मन ओट गहु
साधू की मन ओट गहु उकति सिआनप तिआगु ॥
गुर दीखिआ जिह मनि बसै नानक मसतकि भागु ॥1॥260॥
खुदी मिटी तब सुख भए
खुदी मिटी तब सुख भए मन तन भए अरोग ॥
नानक द्रिसटी आइआ उसतति करनै जोगु ॥1॥260॥
सति कहउ सुनि मन मेरे
सति कहउ सुनि मन मेरे सरनि परहु हरि राइ ॥
उकति सिआनप सगल तिआगि नानक लए समाइ ॥1॥260॥
हरि हरि मुख ते बोलना
हरि हरि मुख ते बोलना मनि वूठै सुखु होइ ॥
नानक सभ महि रवि रहिआ थान थनंतरि सोइ ॥1॥260॥
लेखै कतहि न छूटीऐ
लेखै कतहि न छूटीऐ खिनु खिनु भूलनहार ॥
बखसनहार बखसि लै नानक पारि उतार ॥1॥261॥