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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 6
खात खरचत बिलछत रहे
खात खरचत बिलछत रहे टूटि न जाहि भंडार ॥
हरि हरि जपत अनेक जन नानक नाहि सुमार ॥1॥253॥
गनि मिनि देखहु मनै माहि
गनि मिनि देखहु मनै माहि सरपर चलनो लोग ॥
आस अनित गुरमुखि मिटै नानक नाम अरोग ॥1॥254॥
घोखे सासत्र बेद सभ
घोखे सासत्र बेद सभ आन न कथतउ कोइ ॥
आदि जुगादी हुणि होवत नानक एकै सोइ ॥1॥254॥
ङणि घाले सभ दिवस सास
ङणि घाले सभ दिवस सास नह बढन घटन तिलु सार ॥
जीवन लोरहि भरम मोह नानक तेऊ गवार ॥1॥254॥
चिति चितवउ चरणारबिंद
चिति चितवउ चरणारबिंद ऊध कवल बिगसांत ॥
प्रगट भए आपहि गोबिंद नानक संत मतांत ॥1॥254॥
छाती सीतल मनु सुखी
छाती सीतल मनु सुखी छंत गोबिद गुन गाइ ॥
ऐसी किरपा करहु प्रभ नानक दास दसाइ ॥1॥254॥
जोर जुलम फूलहि घनो
जोर जुलम फूलहि घनो काची देह बिकार ॥
अह्मबुधि बंधन परे नानक नाम छुटार ॥1॥255॥