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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 2
किरत कमावन सुभ असुभ
किरत कमावन सुभ असुभ कीने तिनि प्रभि आपि ॥
पसु आपन हउ हउ करै नानक बिनु हरि कहा कमाति ॥1॥251॥
राचि रहे बनिता बिनोद
राचि रहे बनिता बिनोद कुसम रंग बिख सोर ॥
नानक तिह सरनी परउ बिनसि जाइ मै मोर ॥1॥251॥
टूटे बंधन जासु के
टूटे बंधन जासु के होआ साधू संगु ॥
जो राते रंग एक कै नानक गूड़ा रंगु ॥1॥252॥
लालच झूठ बिकार मोह
लालच झूठ बिकार मोह बिआपत मूड़े अंध ॥
लागि परे दुरगंध सिउ नानक माइआ बंध ॥1॥252॥
लाल गुपाल गोबिंद प्रभ
लाल गुपाल गोबिंद प्रभ गहिर ग्मभीर अथाह ॥
दूसर नाही अवर को नानक बेपरवाह ॥1॥252॥
आतम रसु जिह जानिआ
आतम रसु जिह जानिआ हरि रंग सहजे माणु ॥
नानक धनि धनि धंनि जन आए ते परवाणु ॥1॥252॥
यासु जपत मनि होइ अनंदु
यासु जपत मनि होइ अनंदु बिनसै दूजा भाउ ॥
दूख दरद त्रिसना बुझै नानक नामि समाउ ॥1॥252॥
अंतरि मन तन बसि रहे
अंतरि मन तन बसि रहे ईत ऊत के मीत ॥
गुरि पूरै उपदेसिआ नानक जपीऐ नीत ॥1॥253॥