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शब्द -गुरू अर्जन देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Arjan Dev Ji 9
यार मीत सुनि साजनहु
यार मीत सुनि साजनहु बिनु हरि छूटनु नाहि ॥
नानक तिह बंधन कटे गुर की चरनी पाहि ॥1॥259॥
रोसु न काहू संग करहु
रोसु न काहू संग करहु आपन आपु बीचारि ॥
होइ निमाना जगि रहहु नानक नदरी पारि ॥1॥259॥
लालच झूठ बिखै बिआधि
लालच झूठ बिखै बिआधि इआ देही महि बास ॥
हरि हरि अम्रितु गुरमुखि पीआ नानक सूखि निवास ॥1॥259॥
वासुदेव सरबत्र मै
वासुदेव सरबत्र मै ऊन न कतहू ठाइ ॥
अंतरि बाहरि संगि है नानक काइ दुराइ ॥1॥259॥
हउ हउ करत बिहानीआ
हउ हउ करत बिहानीआ साकत मुगध अजान ॥
ड़ड़कि मुए जिउ त्रिखावंत नानक किरति कमान ॥1॥260॥