post Contents ( Hindi.Shayri.Page)
- 1 चौरी करत कान्ह धरि पाए
- 2 कत हो कान्ह काहु कैं जात
- 3 घर गौरस जनि जाहु पराए
- 4 ग्वालिनि! दोष लगावति जोर
- 5 गए स्याम ग्वालिनि -घर सूनैं
- 6 ऐसो हाल मेरैं घर कीन्हौ
- 7 करत कान्ह ब्रज-घरनि अचगरी
- 8 मेरौ माई ! कौन कौ दधि चोरैं
- 9 अपनौ गाउँ लेउ नँदरानी
- 10 लोगनि कहत झुकति तू बौरी
- 11 महरि तैं बड़ी कृपन है माई
- 12 अनत सुत! गोरस कौं कत जात
- 13 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
श्रीकृष्ण बाल-माधुरी -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji Part 17
चौरी करत कान्ह धरि पाए
चौरी करत कान्ह धरि पाए ।
निसि-बासर मोहि बहुत सतायौ, अब हरि हाथहिं आए ॥
माखन-दधि मेरौ सब खायौ, बहुत अचगरी कीन्ही ।
अब तौ घात परे हौ लालन, तुम्हें भलैं मैं चीन्ही ॥
दोउ भुज पकरि कह्यौ, कहँ जैहौ,माखन लेउँ मँगाइ।
तेरी सौं मैं नैकुँ न खायौ, सखा गए सब खाइ ॥
मुख तन चितै, बिहँसि हरि दीन्हौ, रिस तब गई बुझाइ ।
लियौ स्याम उर लाइ ग्वालिनी, सूरदास बलि जाइ ॥
राग धनाश्री
कत हो कान्ह काहु कैं जात
कत हो कान्ह काहु कैं जात ।
वे सब ढीठ गरब गोरस कैं, मुख सँभारि बोलति नहिं बात ॥
जोइ-जोइ रुचै सोइ तुम मोपै माँगे लेहु किन तात ।
ज्यौं-ज्यौं बचन सुनौ मुख अमृत, त्यौ-त्यौं सुख पावत सब गात ॥
केशी टेव परी इन गोपिन, उरहन कैं मिस आवति प्रात ।
सूर सू कत हठि दोष लगावति, घरही कौ माखन नहिं खात ॥
राग गौरी
घर गौरस जनि जाहु पराए
घर गौरस जनि जाहु पराए ।
दूध भात भोजन घृत अमृत, अरु आछौ करि दह्यौ जमाए ॥
नव लख धेनु खरिक घर तेरैं, तू कत माखन खात पराए ।
निलज ग्वालिनी देति उरहनौ, वै झूठें करि बचन बनाए ॥
लघु-दीरघता कछु न जानैं, कहूँ बछरा कहुँ धेनु चराए ।
सूरदास प्रभु मोहन नागर, हँसि-हँसि जननी कंठ लगाए ॥
ग्वालिनि! दोष लगावति जोर
(कान्ह कौं) ग्वालिनि! दोष लगावति जोर ।
इतनक दधि-माखन कैं कारन कबहिं गयौ तेरी ओर ॥
तू तौ धन-जोबन की माती, नित उठि आवति भोर ।
लाल कुँअर मेरौ कछू न जानै, तू है तरुनि किसोर ॥
कापर नैंन चढ़ाए डोलति, ब्रज मैं तिनुका तोर ।
सूरदास जसुदा अनखानी, यह जीवन-धन मोर ॥
राग बिलावल
गए स्याम ग्वालिनि -घर सूनैं
गए स्याम ग्वालिनि -घर सूनैं ।
माखन खाइ, डारि सब गोरस, बासन फोरि किए सब चूनै ॥
बड़ौ माट इक बहुत दिननि कौ, ताहि कर्यौ दस टूक ।
सोवत लरिकनि छिरकि मही सौं, हँसत चलै दै कूक ॥
आइ गई ग्वालिनि तिहिं औसर, निकसत हरि धरि पाए ।
देखे घर-बासन सब फूटे, दूध-दही ढरकाए ॥
दोउ भुज धरि गाढ़ैं करि लीन्हें, गई महरि कै आगैं ।
सूरदास अब बसै कौन ह्याँ, पति रहिहै ब्रज त्यागैं ॥
राग गौरी
ऐसो हाल मेरैं घर कीन्हौ
ऐसो हाल मेरैं घर कीन्हौ, हौं ल्याई तुम पास पकरि कै ।
फौरि भाँड़ दधि माखन खायौ, उबर्यौ सो डार्यौ रिस करि कै ॥
लरिका छिरकि मही सौं देखै, उपज्यौ पूत सपूत महरि कै ।
बड़ौ माट घर धर्यौ जुगनि कौ, टूक-टूक कियौ सखनि पकरि कै ॥
पारि सपाट चले तब पाए, हौं ल्याई तुमहीं पै धरि कै ।
सूरदास प्रभु कौं यौं राखौ, ज्यौं राखिये जग मत्त जकरि कै ॥
राग-बिलावल
करत कान्ह ब्रज-घरनि अचगरी
करत कान्ह ब्रज-घरनि अचगरी ।
खीजति महरि कान्ह सौं, पुनि-पुनि उरहन लै आवति हैं सगरी ॥
बड़े बाप के पूत कहावत, हम वै बास बसत इक बगरी ।
नंदहु तैं ये बड़े कहैहैं, फेरि बसैहैं यह ब्रज-नगरी ॥
जननी कैं खीझत हरि रोए, झूठहि मोहि लगावति धगरी ।
सूर स्याम-मुख पोंछि जसोदा, कहति सबै जुवती हैं लँगरी ॥
राग-कान्हरौ
मेरौ माई ! कौन कौ दधि चोरैं
मेरौ माई ! कौन कौ दधि चोरैं ।
मेरैं बहुत दई कौ दीन्हौ, लोग पियत हैं औरै ॥
कहा भयौ तेरे भवन गए जो, पियौ तनक लै भोरै ।
ता ऊपर काहैं गरजति है, मनु आई चढ़ि घोरै ॥
माखन खाइ, मह्यौ सब डारै, बहुरौ भाजन फोरै ।
सूरदास यह रसिक ग्वालिनी, नेह नवल सँग जोरै ॥
राग नट
अपनौ गाउँ लेउ नँदरानी
अपनौ गाउँ लेउ नँदरानी ।
बड़े बाप की बेटी, पूतहि भली पढ़ावति बानी ॥
सखा-भीर लै पैठत घर मैं, आपु खाइ तौ सहिऐ ।
मैं जब चली सामुहैं पकरन, तब के गुन कहा कहिऐ ॥
भाजि गए दुरि देखत कतहूँ, मैं घर पौढ़ी आइ ।
हरैं-हरैं बेनी गहि पाछै, बाँधी पाटी लाइ ॥
सुनु मैया, याकै गुन मोसौं, इन मोहि लयो बुलाई ।
दधि मैं पड़ी सेंत की मोपै चींटी सबै कढ़ाई ॥
टहल करत मैं याके घर की, यह पति सँग मिलि सोई ।
सूर-बचन सुनि हँसी जसोदा, ग्वालि रही मुख गोई ॥
राग रामकली
लोगनि कहत झुकति तू बौरी
लोगनि कहत झुकति तू बौरी ।
दधि माखन गाँठी दै राखति, करत फिरत सुत चोरी ॥
जाके घर की हानि होति नित, सो नहिं आनि कहै री ।
जाति-पाँति के लोग न देखति और बसैहै नैरी ॥
घर-घर कान्ह खान कौ डोलत, बड़ी कृपन तू है री ।
सूर स्याम कौं जब जोइ भावै, सोइ तबहीं तू दै री ॥
राग नटनारायन
महरि तैं बड़ी कृपन है माई
महरि तैं बड़ी कृपन है माई ।
दूध-दही बहु बिधि कौ दीनौ, सुत सौं धरति छपाई ॥
बालक बहुत नहीं री तेरैं, एकै कुँवर कन्हाई ।
सोऊ तौ घरहीं घर डोलतु, माखन खात चोराई ॥
बृद्ध बयस पूरे पुन्यनि तैं, तैं बहुतै निधि पाई ।
ताहू के खैबे-पीबे कौं, कहा करति चतुराई ॥
सुनहु न बचन चतुर नागरि के, जसुमति नंद सुनाई ।
सूर स्याम कौं चोरी कैं, मिस, देखन है यह आई ॥
राग मलार
अनत सुत! गोरस कौं कत जात
अनत सुत! गोरस कौं कत जात ?
घर सुरभी कारी-धौरी कौ माखन माँगि न खात ॥
दिन प्रति सबै उरहनेकैं मिस, आवति हैं उठि प्रात ।
अनलहते अपराध लगावति, बिकट बनावति बात ॥
निपट निसंक बिबादित सनमुख, सुनि-सुनि नंद रिसात ।
मोसौं कहति कृपन तेरैं घर ढौटाहू न अघात ॥
करि मनुहारि उठाइ गोद लै, बरजति सुत कौं मात ।
सूर स्याम! नित सुनत उरहनौ, दुखख पावत तेरौ तात ॥
राग नट