post Contents ( Hindi.Shayri.Page)
- 1 मोहन, मानि मनायौ मेरौ
- 2 खेलन अब मेरी जाइ बलैया
- 3 खेलन चलौ बाल गोबिन्द
- 4 खेलन कौं हरि दूरि गयौ री
- 5 खेलन दूरि जात कत कान्हा
- 6 दूरि खेलन जनि जाहु लाला मेरे
- 7 जसुमति कान्हहि यहै सिखावति
- 8 नंद बुलावत हैं गोपाल
- 9 जेंवत कान्ह नंद इकठौरे
- 10 साँझ भई घर आवहु प्यारे
- 11 बल-मोहन दोउ करत बियारी
- 12 कीजै पान लला रे यह लै आई दूध
- 13 बल मोहन दोऊ अलसाने
- 14 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
श्रीकृष्ण बाल-माधुरी -भक्त सूरदास जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Bhakt Surdas Ji Part 12
मोहन, मानि मनायौ मेरौ
मोहन, मानि मनायौ मेरौ ।
हौं बलिहारी नंद-नँदन की, नैकु इतै हँसि हेरौ ॥
कारौ कहि-कहि तोहि खिझावत, बरज त खरौ अनेरौ ।
इंद्रनील मनि तैं तन सुंदर, कहा कहै बल चेरौ ॥
न्यारौ जूथ हाँकि लै अपनौ, न्यारी गाइ निबेरौ ।
मेरौ सुत सरदार सबनि कौ, बहुते कान्ह बड़ेरौ ॥
बन में जाइ करो कौतूहल, यह अपनौ है खेरौ ।
सूरदास द्वारैं गावत है, बिमल-बिमल जस तेरौ ॥
राग नट
खेलन अब मेरी जाइ बलैया
खेलन अब मेरी जाइ बलैया ।
जबहिं मोहि देखत लरिकन सँग, तबहिं खिजत बल भैया ॥
मोसौं कहत तात बसुदेव कौ देवकि तेरी मैया ।
मोल लियौ कछु दै करि तिन कौं, करि-करि जतन बढ़ैया ॥
अब बाबा कहि कहत नंद सौं, जकसुमति सौं कहै मैया ।
ऐसैं कहि सब मोहि खिझावत, तब उठि चल्यौ खिसैया ॥
पाछैं नंद सुनत हे ठाढ़े, हँसत हँसत उर लैया ।
सूर नंद बलरामहि धिरयौ, तब मन हरष कन्हैया ॥
खेलन चलौ बाल गोबिन्द
खेलन चलौ बाल गोबिन्द !
सखा प्रिय द्वारैं बुलावत, घोष-बालक-बूंद ॥
तृषित हैं सब दरस कारन, चतुर चातक दास ।
बरषि छबि नव बारिधर तन, हरहु लोचन-प्यास ॥
बिनय-बचननि सुनि कृपानिधि, चले मनहर चाल ।
ललित लघु-लघु चरन-कर, उर-बाहु-नैन बिसाल ॥
अजिर पद-प्रतिबिंब राजत, चलत, उपमा-पुंज ।
प्रति चरन मनु हेम बसुधा, देति आसन कंज ॥
सूर-प्रभु की निरखि सोभा रहे सुर अवलोकि ।
सरद-चंद चकोर मानौ, रहे थकित बिलोकि ॥
राग रामकली
खेलन कौं हरि दूरि गयौ री
खेलन कौं हरि दूरि गयौ री ।
संग-संग धावत डोलत हैं, कह धौं बहुत अबेर भयौ री ॥
पलक ओट भावत नहिं मोकौं, कहा कहौं तोहि बात ।
नंदहि तात-तात कहि बोलत, मोहि कहत है मात ॥
इतनी कहत स्याम-घन आए , ग्वाल सखा सब चीन्हे ।
दौरि जाइ उर लाइ सूर-प्रभु हरषि जसोदा लीन्हें ॥
राग धनाश्री
खेलन दूरि जात कत कान्हा
खेलन दूरि जात कत कान्हा ?
आजु सुन्यौं मैं हाऊ आयौ, तुम नहिं जानत नान्हा ॥
इक लरिका अबहीं भजि आयौ, रोवत देख्यौ ताहि ।
कान तोरि वह लेत सबनि के, लरिका जानत जाहि ॥
चलौ न, बेगि सवारैं जैयै, भाजि आपनैं धाम ।
सूर स्याम यह बात सुनतहीं बोलि लिए बलराम ॥
राग बिहागरौ
दूरि खेलन जनि जाहु लाला मेरे
दूरि खेलन जनि जाहु लाला मेरे, बन मैं आए हाऊ !
तब हँसि बोले कान्हर, मैया, कौन पठाए हाऊ ?
अब डरपत सुनि-सुनि ये बातैं, कहत हँसत बलदाऊ ।
सप्त रसातल सेषासन रहे, तब की सुरति भुलाऊ ॥
चारि बेद ले गयौ संखासुर, जल मैं रह्यौ लुकाऊ ।
मीन-रूप धरि कै जब मार्यौ, तबहि रहे कहँ हाऊ ?
मथि समुद्र सुर-असुरनि कैं हित, मंदर जलधि धसाऊ ।
कमठ -रूप धरि धर्यौ पीठि पर, तहाँ न देखे हाऊ !
जब हिरनाच्छ जुद्ध अभिलाष्यौ, मन मैं अति गरबाऊ ।
धरि बाराह-रूप सो मार्यौ, लै छिति दंत अगाऊ ॥
बिकट-रूप अवतार धर्यौं जब, सो प्रहलाद बचाऊ ।
हिरनकसिप बपु नखनि बिदार्यौ, तहाँ न देखे हाऊ !
बामन-रूप धर्यौ बलि छलि कै, तीनि परग बसुधाऊ ।
स्रम जल ब्रह्म-कमंडल राख्यौ, दरसि चरन परसअऊ ॥
मार्यौ मुनि बिनहीं अपराधहि, कामधेनु लै हाऊ ।
इकइस बार निछत्र करी छिति, तहाँ न देखे हाऊ !
राम -रूप रावन जब मार्यौ, दस-सिर बीस-भुजाऊ ।
लंक जराइ छार जब कीनी, तहाँ न देखे हाऊ !
भक्त हेत अवतार धरे, सब असुरनि मारि बहाऊ ।
सूरदास प्रभु की यह लीला, निगम नेति नित गाऊ ॥
राग जैतश्री
जसुमति कान्हहि यहै सिखावति
जसुमति कान्हहि यहै सिखावति ।
सुनहु स्याम, अब बड़े भए तुम, कहि स्तन-पान छुड़ावति ॥
ब्रज-लरिका तोहि पीवत देखत, लाज नहिं आवति ।
जैहैं बिगरि दाँत ये आछे, तातैं कहि समुझावति ॥
अजहुँ छाँड़ि कह्यौ करि मेरौ, ऐसी बात न भावति ।
सूर स्याम यह सुनि मुसुक्याने, अंचल मुखहि लुकावत ॥
राग रामकली
नंद बुलावत हैं गोपाल
नंद बुलावत हैं गोपाल ।
आवहु बेगि बलैया लेउँ हौं, सुंदर नैन बिसाल ॥
परस्यौ थार धर्यौ मग जोवत, बोलति बचन रसाल ।
भात सिरात तात दुख पावत, बेगि चलौ मेरे लाल ॥
हौं वारी नान्हें पाइनि की, दौरि दिखावहु चाल ।
छाँड़ि देहु तुम लाल अटपटि, यह गति मंद मराल ॥
सो राजा जो अगमन पहुँचै, सूर सु भवन उताल ।
जो जैहैं बल देव पहिले हीं, तौ हँसहैं सब ग्वाल ॥
राग सारंग
जेंवत कान्ह नंद इकठौरे
जेंवत कान्ह नंद इकठौरे ।
कछुक खात लपटात दोउ कर, बालकेलि अति भोरे ॥
बरा-कौर मेलत मुख भीतर, मिरिच दसन टकटौरे ।
तीछन लगी नैन भरि आए, रोवत बाहर दौरे ॥
फूँकति बदन रोहिनी ठाढ़ी, लिए लगाइ अँकोरे।
सूर स्याम कौं मधुर कौर दै कीन्हें तात निहोरे ॥
साँझ भई घर आवहु प्यारे
साँझ भई घर आवहु प्यारे ।
दौरत कहा चोट लगगगुहै कहुँ, पुनि खेलिहौ सकारे ॥
आपुहिं जाइ बाँह गहि ल्याई, खेह रही लपटाइ ।
धूरि झारि तातौ जल ल्याई, तेल परसि अन्हवाइ ॥
सरस बसन तन पोंछि स्याम कौ, भीतर गई लिवाइ ।
सूर स्याम कछु करौ बियारी, पुनि राखौं पौढ़ाइ ॥
राग कान्हरौ
बल-मोहन दोउ करत बियारी
बल-मोहन दोउ करत बियारी ।
प्रेम सहित दोउ सुतनि जिंवावति, रोहिनि अरु जसुमति महतारी ॥
दोउ भैया मिलि खात एक सँग, रतन-जटित कंचन की थारी ।
आलस सौं कर कौर उठावत, नैननि नींद झमकि रही भारी ॥
दोउ माता निरखत आलस मुख-छबि पर तन-मन डारतिं बारी ।
बार बार जमुहात सूर-प्रभु, इहि उपमा कबि कहै कहा री ॥
राग बिहागरौ
कीजै पान लला रे यह लै आई दूध
कीजै पान लला रे यह लै आई दूध जसोदा मैया ।
कनक-कटोरा भरि लीजै, यह पय पीजै, अति सुखद कन्हैया ॥
आछैं औट्यौ मेलि मिठाई, रुचि करि अँचवत क्यौं न नन्हैया ।
बहु जतननि ब्रजराज लड़ैते, तुम कारन राख्यौ बल भैया ॥
फूँकि-फूँकि जननी पय प्यावति , सुख पावति जो उर न समेया ।
सूरज स्याम-राम पय पीवत, दोऊ जननी लेतिं बलैया ॥
राग केदारौ
बल मोहन दोऊ अलसाने
बल-मोहन दोऊ अलसाने ।
कछु कछु खाइ दूध अँचयौ, तब जम्हात जननी जाने ॥
उठहु लाल! कहि मुख पखरायौ, तुम कौं लै पौढ़ाऊँ ।
तुम सोवो मैं तुम्हें सुवाऊँ, कछु मधुरैं सुर गाऊँ ॥
तुरत जाइ पौढ़े दोउ भैया, सोवत आई निंद ।
सूरदास जसुमति सुख पावति पौढ़े बालगोबिन्द ॥