शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri
जब से तुम रूठी हो तब से दिल ये टूटा है
अब मैंने जाना है लोग इसमें क्यों बीमार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|
जबसे तुमसे ना मिला हूँ ना नींद है बस खुमार है
ना जाने ये कैसा पागलपन, कैसा ये बुखार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|
जबसे ना देखा हूँ ना चैन ना क़रार है
ज़हर जुदाई का डस रहा बार-बार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|
तुझको पा लूँ तुझे अपना बना लूँ
मेरे दिल की यही पुकार है
कब तेरे से मिलूँ कैसे तुझको मनाऊं
तुझसे मिलने के लिए मेरा दिल ये बेक़रार है
शायद यही प्यार है, शायद यही प्यार है|