शब्द सृजन-कविता-प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम” -Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Praful Singh “Bechain Kalam”
शब्द समर के हेतु बने हैं
संधि-पत्र भी शब्दों का।
शब्दों से विच्छेद हुए हैं
प्रणय-पत्र भी शब्दों का।
शब्दों से ही स्नेह हमारा
रार हमारी शब्दों से।
शब्दों से ही जीत हमारी
हार हमारी शब्दों से।
शब्दों से ही सत्ता चलती
संविधान भी शब्दों का।
मूल समस्या शब्दों की ही
समाधान भी शब्दों का।
शब्द पतित पावन होते हैं
कदाचार भी शब्दों से।
शब्दो से शुचि ब्रह्मचर्य है
सदाचार भी शब्दों से।
शब्द चेतना संवाहक हैं
करें ललित विन्यास जहाँ।
रिद्धि-सिद्धि अनुगामी इनकी
योग-क्षेम, संन्यास वहाँ।
शब्दों का ही रुदन यहाँ पर
गान यहाँ पर शब्दों का।
शब्दों के सब धर्मग्रंथ हैं
गिरा-ज्ञान सब शब्दों का।
शब्दमयी यह वसुंधरा है
आसमान भी शब्दों का।
शब्द जीव है शब् ब्रह्म है
विधि-विधान सब शब्दों का।
अक्षर-अक्षर शब्द बने हैं
शुद्ध व्याकरण शब्दों का।
शंकर का दर्शन है इसमें
बुद्ध-आचरण शब्दों का।
हो जाते नि:शब्द कभी हम
तब भी शब्द बोलते हैं।
सूक्ष्म तरंगों के माध्यम से
विष, पीयूष घोलते हैं।
अपशब्दों के तीर चलें तो
ढाल बना लें शब्दों को।
जीवन का सुर भंग लगे तो
ताल बना लें शब्दों को।
‘सरस’ शब्द के सुर-सरिता की
धार बना लें शब्दों को।
माणिक, मुक्ता को चुन कर तुम
हार बना लें शब्दों को।
भाव-सुमन-दल सुरभित कर
व्यापार बना लें शब्दों को।
जीवन की समरसता का
आधार बना लो शब्दों को।।
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