शबाना-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar
ये आए दिन के हंगामे
ये जब देखो सफ़र करना
यहाँ जाना – वहाँ जाना
इसे मिलना उसे मिलना
हमारे सारे लम्हे
ऐसे लगते हैं
कि जैसे ट्रेन के चलने से पहले
रेलवे स्टेशनों पर
जल्दी-जल्दी अपने डब्बे ढूँढते
कोई मुसाफ़र हों
जिन्हें कब सांस भी लेने की मुह्लत है
कभी लगता है
तुमको मुझसे मुझको तुमसे मिलने का
ख़याल आए
कहाँ इतनी भी फ़ुर्सत है
मगर जब संगदिल दुनिया मेरा दिल तोड़ती है तो
कोई उम्मीद चलते चलते
जब मुँह मोड़ती है तो
कभी कोई ख़ुशी का फूल
जब इस दिल में खिलता है
कभी जब मुझको अपने ज़हन से
कोई ख़याल इन॰आम मिलता है
कभी जब इक तमन्ना पूरी होने से
ये दिल ख़ाली-सा होता है
कभी जब दर्द आके पलकों पे मोती पिरोता है
तो ये एहसास होता है
ख़ुशी हो ग़म हो हैरत हो
कोई जज़्बा हो
इसमें जब कहीं इक मोड़ आए तो
वहाँ पलभर को
सारी दुनिया पीछे छूट जाती है
वहाँ पलभर को
इस कठपुतली जैसी ज़िंदगी की
डोरी-डोरी टूट जाती है
मुझे उस मोड़ पर
बस इक तुम्हारी ही ज़रूरत है
मगर ये ज़िंदगी की ख़ूबसूरत इक हक़ीक़त है
कि मेरी राह में जब ऐसा कोई मोड़ आया है
तो हर उस मोड़ पर मैंने
तुम्हें हमराह पाया है।