वो ज़माना गुज़र गया कब का-लावा -जावेद अख़्तर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Javed Akhtar
वो ज़माना गुज़र गया कब का
था जो दीवाना मर गया कब का
ढ़ूँढता था जो इक नई दुनिया
लौटके अपने घर गया कब का
वो जो लाया था हमको दरिया तक
पार अकेले उतर गया कब का
उसका जो हाल है वही जाने
अपना तो ज़ख़्म भर गया कब का
ख्वाब-दर-ख्वाब था जो शीराज़ा
अब कहाँ है, बिखर गया कब का
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