वो निगाहें सलीब हैं-साये में धूप-दुष्यंत कुमार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Dushyant Kumar
वो निगाहें सलीब हैं
हम बहुत बदनसीब हैं
आइये आँख मूँद लें
ये नज़ारे अजीब हैं
ज़िन्दगी एक खेत है
और साँसे जरीब हैं
सिलसिले ख़त्म हो गए
यार अब भी रक़ीब है
हम कहीं के नहीं रहे
घाट औ’ घर क़रीब हैं
आपने लौ छुई नहीं
आप कैसे अदीब हैं
उफ़ नहीं की उजड़ गए
लोग सचमुच ग़रीब हैं