विश्व, न सम्मुख आ पाओगे-नदी किनारे-गोपालदास नीरज-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gopal Das Neeraj
विश्व, न सम्मुख आ पाओगे !
अन्तर ज्वालामुखी चीरकर,
तरल अश्रु बूंदों से छनकर,
जब निकलेगा मूक रुदन मम;
विश्व अरे, तब केवल कानों के ही परदे अजमाओगे!
विश्व, न सम्मुख आ पाओगे ।
चिर-अपूर्ण अरमान विकल ले,
संचित उर के गान विकल ले,
जब सो जायेगा मेरा उर;
चार कदम भी तो मेरी तुम लाश नहीं ले जा पाओगे!
विश्व, न सम्मुख आ पाओगे !