वादी-ए-कश्मीर-रात पश्मीने की-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
चल चलेंगे चार-चनारों से मिलेंगे
है वादी-ए-कश्मीर बहारों से मिलेंगे
तेरे ही पर्वतों पे तो फिरदौस रखा है
आ हाथ पकड़ चल के सितारों से मिलेंगे
उदास लग रही है तेरी मुस्कुराहटें
पास आ ज़रा सुनूँ मैं तेरी दिल की आहटें
हमको बुलाके हम भी हमारो से मिलेंगे
है वादी-ए-कश्मीर बहारों से मिलेंगे
दलनेक पे परदेशी परिंदो का वो आना
वो रूठ गए है तो जरूरी है मनाना
चल उड़ते परिंदो की कतारों से मिलेंगे
है वादी-ए-कश्मीर बहारों से मिलेंगे
कश्मीर की बर्फों से निकलते हुए दरिया
बहते है ज़मीनो पे मचलते हुए दरिया
हब्बा के लिखे सारे नज़ारों से मिलेंगे
है वादी-ए-कश्मीर बहारों से मिलेंगे