वह कलम कहाँ है जनाब-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
वह कलम कहाँ है जनाब
जिससे शूरमे ने पहली बार
इनकलाब जिंदाबाद लिखा था।
शब्द अंगार बने
ज़ालिम की नज़रों में घातक हथियार बने
निर्बलों के यार बने
नौजवानों के माथों में
सदैव को ललकार बने।
वह जानता था
कि पशु जैसे लाल कपड़े से डरता है।
अँधेरा जुगनुओं से
हाकिम भी शास्त्र से घबराता है।
शस्त्र को वह क्या समझता है?
शस्त्र के ओट में तो
लूटना कूटना दोनों काम आसान।
स्वयं बनो महान।
कलम को कलम करना मुहाल
अँकुरती है बार बार।
कोंपलों से टहनियाँ फिर कलमें
अखंड प्रवाह शब्द-सृजन का।
कहाँ है वह पन्ना
जिस पर बाप किसान सिंह के ताबेदार पुत्र ने*
लिख भेजा था।
मेरी जान के लिए
लाट साहब को कोई
अर्ज़ी-पत्र न डालना बापू।
मैं अपनी बात स्वयं करूँगा।
जिस मार्ग पर चला हूँ
अपनी होनी स्वयं बरूँगा
वकालत ज़लालत है
झुक गोरों के दरबार।
झुकना न बाबुला
टूट जाना, पर लफना न कभी।
कहाँ है वह किताब?
जिसका पन्ना मोड़ कर
इनकलाबी के साथ रिश्ता जोड़ कर
शूरमे ने कहा था
बाकी इबारत
फिर फिर तब तक पढ़ता रहूँगा
जब तक नहीं चुकती
गुरबत और ज़हालत।
करता रहूँगा चिड़िया की वकालत
मांस नोचते बाज़ों के ख़िलाफ़
लड़ता रहूँगा।
युद्ध करता रहूँगा।
कहाँ है वह पगड़ी?
जिसको सँभालने के लिए चाचा अजीत सिंह ने
खेतों-वनों को जगाया था
जाबिर हुकुमतों को लिख कर सुनाया था
धरती हलवाहक की माँ है।
अब शूरमे का पिस्तौल सौंपकर
हमसे कहते हो
तालियाँ बजाओ खुश होओ
लौटा दिया है हमने शस्त्र।
पर हम यूं नहीं बहलते।
शूरमे की वह कलम तो लौटाओ
वह पन्ना को दिखाओ!
जिस पर अंकित है लाल लौ वाला
मुक्ति मार्ग का नक्शा।
प्रकाशित जागते माथे के पास
पिस्तौल बहुत बाद में आता है
दीना कांगड़ से जफ़रनामा बोलता है
चूँ कार अज़ हमा हीलते दर गुज़श्त।
हलाल अस्त बुरदन ब शमशीर दस्त।
अर्थात् हारते जब सब उपाय
ठीक हथियारों की राह।
पर शूरमे ने सब इबारत
कलम से लिखी
आप वही पन्ना उठाए फिरते हो
जो तुम्हारे हित में है।
मुक्तिओं का सूरज तो
ज्ञानभूमि सींच कर
अपना आपा धुन कर
माथे में से उगता है।
हक़ इंसाफ़ के लिए
रात दिन लड़ता है।