वक़्त-यार जुलाहे-गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ
कुचलता हुआ घास की कलगियाँ
गिराता हुआ गर्दनें इन दरख़्तों की, छुपता हुआ
जिनके पीछे से
निकला चला जा रहा था वह सूरज
त’आक़ुब में था उसके मैं
गिरफ़्तार करने गया था उसे
जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था
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