वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई-कविता -फ़िराक़ गोरखपुरी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Firaq Gorakhpuri
वक़्त-ए-ग़ुरूब आज करामात हो गई
ज़ुल्फ़ों को उस ने खोल दिया रात हो गई
कल तक तो उस में ऐसी करामत न थी कोई
वो आँख आज क़िबला-ए-हाजात हो गई
ऐ सोज़-ए-इश्क़ तू ने मुझे क्या बना दिया
मेरी हर एक साँस मुनाजात हो गई
ओछी निगाह डाल के इक सम्त रख दिया
दिल क्या दिया ग़रीब की सौग़ात हो गई
कुछ याद आ गई थी वो ज़ुल्फ़-ए-शिकन-शिकन
हस्ती तमाम चश्मा-ए-ज़ुल्मात हो गई
अहल-ए-वतन से दूर जुदाई में यार की
सब्र आ गया ‘फ़िराक़’ करामात हो गई