लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri
लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है,
बिजली की चकाचौंध में मैंने बच्चे को बिगड़ते देखा है,
जिनमे होती है हिम्मत उनको कुछ कर गुजरते देखा है,
जिनको होती है दिक्कत उनको हालात बदलते देखा है,
फूक-फूक के रखना कदम मेरे दोस्तो,
छिपकली से भी जयादा मैंने इंसानो को रंग बदलते देखा है,
बहुत ईमानदारी से पढ़ के तैयारी करते हैं, मेरे देश के बच्चे,
लेकिन कुछ भ्रष्टलोगो को इनके भविष्य से खिलवाड़ करते देखा है,
जूनून में ही कुछ कर जाते हैं या बन जाते हैं कुछ लोग,
बाकी को तो मैंने सड़को पे भटकते देखा है
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