रूह देखी है कभी!-कुछ और नज्में -गुलज़ार-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gulzar
रूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है ?
जागते जीते हुए दूधिया कोहरे से लिपटकर
साँस लेते हुए इस कोहरे को महसूस किया है ?
या शिकारे में किसी झील पे जब रात बसर हो
और पानी के छपाकों में बजा करती हों टलियाँ
सुबकियाँ लेती हवाओं के वह बैन सुने हैं ?
चौदहवीं रात के बर्फ़ाब से इस चाँद को जब
ढेर-से साये पकड़ने के लिए भागते हैं
तुमने साहिल पे खड़े गिरजे को दीवार से लगकर
अपनी गहनाती हुई कोख को महसूस किया है ?
जिस्म सौ बार जले फिर वही मिट्टी का ढेला
रूह इक बार जलेगी तो वह कुन्दन होगी
रूह देखी है, कभी रूह को महसूस किया है ?