post Contents ( Hindi.Shayri.Page)
- 1 क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में
- 2 क्या ख़रीदोगे ये बाज़ार बहुत महँगा है
- 3 टूटा हुआ दिल तेरे हवाले मेरे अल्लाह
- 4 जो किताबों ने लिखा, उससे जुदा लिखना था
- 5 जिस्म में क़ैद हैं घरों की तरह
- 6 दूरियां पाँव की थकन जैसी
- 7 एक दिन देखकर उदास बहुत
- 8 मस्जिद खाली खाली है
- 9 कहाँ वो ख़्वाब महल ताजदारियों वाले
- 10 कश्मीर
- 11 पानी
- 12 हिन्दी कविता- Hindi.Shayri.Page
रुत-राहत इन्दौरी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Rahat Indori Part 4
क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में
क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में,
बहते हुए पानी में, तेवर भी तो उसका है,
तू नूह का बेटा है, कुछ बस में नहीं तेरे,
कश्ती भी तो उसकी है, लंगर भी तो उसका है…
सूरज के निकलने से, तारों के बिखरने तक,
मौजों के थपेड़ों से, तूफां के ठहरने तक,
गुंचों के महकने से, कलियों के चटखने तक,
क्या तूने नहीं देखा, पैक़र भी तो उसका है…
अज़मत से हक़ीक़त से, मुंह मोड़ना चाहा था,
कुछ हाथियों वालों ने घर तोड़ना चाहा था,
क्या तूने नहीं देखा ? कमज़ोर परिंदों ने,
किस तरह हिफाज़त की, वह घर भी तो उसका है…
क्या तूने नहीं देखा ? क्या देख लिया तूने ?
उसके ही इशारे पर, ये सारे तमाशे हैं,
वह धूप का मालिक है, वह छाँव का खालिक़ है,
आँखें भी तो उसकी हैं, मंज़र भी तो उसका है…
क्या तूने नहीं देखा? वह खाक़ के ज़र्रों से,
सूरज भी बनाता है, तारे भी बनाता है,
मैं क्या हूं, मेरा क्या है, मिट्टी ही समझ मुझको,
पत्थर ही सही लेकिन, पत्थर भी तो उसका है…
क्या ख़रीदोगे ये बाज़ार बहुत महँगा है
क्या ख़रीदोगे ये बाज़ार बहुत महँगा है,
प्यार की ज़िद न करो प्यार बहुत महँगा है…
चाहने वालों की एक भीड़ लगी रहती है,
आजकल आपका दीदार बहुत महँगा है…
इश्क में वादा निभाना कोई आसान नहीं,
करके पछताओगे इकरार बहुत महँगा है…
आज तक तुमने खिलौने ही खरीदे होंगे,
दिल है ये दिल मेरे सरकार बहुत महँगा है…
दे के ताज और हुकूमत भी खरीदा न गया,
आज मालूम हुआ प्यार बहुत महँगा है…
हम सुकूँ ढूँढने आये थे दुकानों में मगर,
फिर कभी देखेंगे इस बार बहुत महँगा है…
टूटा हुआ दिल तेरे हवाले मेरे अल्लाह
टूटा हुआ दिल तेरे हवाले मेरे अल्लाह,
इस घर को तबाही से बचा ले मेरे अल्लाह…
दुनिया के रिवाजों को भी तोड़ दूं लेकिन,
एक शख़्स मुझे अपना बना ले मेरे अल्लाह…
वो साथ वो दिन रात वो नगमात वो लम्हे,
लौटा दे मुझे मेरे उजाले मेरे अल्लाह…
मैं जिसके लिए सारे ज़माने से खफा हूँ,
वो ख़ुद ही मुझे आ के मना ले मेरे अल्लाह…
उलझन को बढ़ाते हैं ये उलझे हुए रस्ते,
अब तेरे सिवा कौन संभाले मेरे अल्लाह…
ये रात ये तूफ़ान ये टूटी हुई कश्ती,
मैं डूबने वाला हूँ बचा ले मेरे अल्लाह…
मैं किसको सदा दूँ जो मेरे ख़्वाब में आकर,
कांटे मेरी पलकों से निकाले मेरे अल्लाह…
जो किताबों ने लिखा, उससे जुदा लिखना था
जो किताबों ने लिखा, उससे जुदा लिखना था,
लिख के शर्मिन्दा हूँ तुझको के सिवा लिखना था…
चाँद लिक्खा कभी सूरज कभी मौसम लिक्खा,
बात इतनी थी मुझे नाम तेरा लिखना था…
तुझसे मिलने की तमन्ना तुझे छूने की हवस,
यानि बहते हुए पानी पे हवा लिखना था…
मैंने काग़ज़ पे सदा दिल की बिखर जाने दी,
मुझको ये भी नहीं मालूम के क्या लिखना था…
मर्तबा दिल का ग़ज़ल मेरी कसीदा उसका,
कुछ न कुछ आज मुझे मेरे ख़ुदा लिखना था…
इनके सीनों में उजाले ना उतारे होते,
जिन चरागों के मुकद्दर में हवा लिखना था…
पानियों और ज़मीनों को करम लिक्खा है,
आसमानों को मुझे तेरी क़बा लिखना था…
तेरे औसाफ रकम हों ये कहां मेरी बिसात,
सिर्फ़ एक रस्म अदा करनी थी क्या लिखना था…
फिर वही मीर से अब तक की सदायों का तिलिस्म,
हेफ़ राहत के तुझे कुछ तो नया लिखना था…
जिस्म में क़ैद हैं घरों की तरह
जिस्म में क़ैद हैं घरों की तरह,
अपनी हस्ती है मकबरों की तरह
तू नहीं था तो मेरी सांसों ने,
जुल्म ढाये सितमगरों की तरह
अगले वक़्तों के हाफिज़े अक्सर,
मुझको लगते हैं नश्तरों की तरह
और दो चार दिन हयात के हैं,
वो भी कट जाएँगे सरों की तरह
कल कफ़स में ही थे तो अच्छे थे,
आज फिरते हैं बेघरों की तरह
अपने फैलाव पर उछलता है,
क़तरा क़तरा समन्दरों की तरह
बन के सय्याद वक़्त ने राहत,
नोच डाला मुझे परों की तरह
दूरियां पाँव की थकन जैसी
दूरियां पाँव की थकन जैसी
और सियाह रात राहज़न जैसी
मेरे आँगन में आ के ठहरी थी
चाँदनी तेरे ही बदन जैसी
मुद्दतों से तलाश करता हूँ
एक ग़ज़ल तेरे बाँकपन जैसी
एक एक हर्फ़ में मिली मुझको
ख़ूबियां सब तेरे दहन जैसी
गम के सेहरा में भागते रहिए
ज़िन्दगी हो गयी हिरन जैसी
कल गुलाबों के साथ फिरती रही
सारी ख़ुशबू तेरे बदन जैसी
सोचता हूँ के इसपे नज़्म कहूँ
एक गुड़िया मेरी बहन जैसी
चन्द लोगों में आज भी राहत
बात है मौलवी मदन जैसी
एक दिन देखकर उदास बहुत
एक दिन देखकर उदास बहुत
आ गए थे वो मेरे पास बहुत
ख़ुद से मैं कुछ दिनों से मिल न सका
लोग रहते हैं आस-पास बहुत
अब गिरेबाँ बा-दस्त हो जाओ
कर चुके उनसे इल्तेमास बहुत
किसने लिक्खा था शहर का नोहा
लोग पढ़कर हुए उदास बहुत
अब कहाँ हम-से पीने वाले रहे
एक टेबल पे इक गिलास बहुत
तेरे इक ग़म ने रेज़ा-रेज़ा किया
वर्ना हम भी थे ग़म-श्नास बहुत
कौन छाने लुगात का दरिया
आप का एक इक्तेबास बहुत
ज़ख़्म की ओढ़नी, लहू की कमीज़
तन सलामत रहे लिबास बहुत
मस्जिद खाली खाली है
मस्जिद खाली खाली है
बस्ती में कव्वाली है
हम जैसों से खाली है
दुनिया किस्मत वाली है
नूर जहाँ है पहलू में
दिल में सब्ज़ी वाली है
माज़ी हो या मुस्तकबिल
अपनी यही बेहाली हे
दरिया फिर भी दरिया है
जग ने प्यास बुझा ली है
दुनिया पहले पत्थर थी
हमने मोम बना ली है
साया साया ढूँढ़ उसे
जिसने धूप निकाली है
कुछ तब्दीली हो यारो
बरसों से ख़ुशहाली है
कहाँ वो ख़्वाब महल ताजदारियों वाले
कहाँ वो ख़्वाब महल ताजदारियों वाले
कहां ये बेलचों वाले तगारियों वाले
कभी मचान से नीचे उतर के बात करो
बहुत पुराने हैं क़िस्से शिकारियों वाले
मुझे ख़बर है के मैं सल्तनत का मालिक हूँ
मगर बदन पे हैं कपड़े भिखारियों वाले
ग़रीब. क़स्बों में अक्सर दिखाई देते हैं
नये शिवाले पुराने पुजारियों वाले
ज़मीं पे रेंगते फिरने की हमको आदत है
हमारे साथ ना आयें सवारियों वाले
अदब कहां का के हर रात देखता हूं मैं
मुशायरे में तमाशे मदारियों वाले
मेरी बहार मेरे घर के फूलदान में है
खिले हैं फूल हरी पीली धारियों वाले
कश्मीर
धुआँ-धुआँ…
धुआँ-धुआँ…
धुआँ-धुआँ, धुआँ ही धुआं…
ये साजिशें दिशाओं की, ये साजिशें हवाओं की,
लहुलुहान हो गयी ज़मीं ये देवताओं की,
ना शंख की सदाएँ हैं, ना अब सदा अज़ान की
नज़र मेरी ज़मीन को लगी है आसमान की
हैं दर बदर ये लोग क्यूँ जले हैं क्यूँ मकाँ
धुआँ-धुआँ, धुआँ ही धुआँ…
ये किसने आग डाल दी है, नर्म नर्म घास पर,
लिखा हुआ है ज़िन्दगी यहां हर एक लाश पर
ये तख्त की लड़ाई है, ये कुर्सियों की जंग है
ये बेगुनाह ख़ून भी सियासतों का रंग है
लकीर खेंच दी गयी दिलों के दरमियाँ
धुआँ-धुआँ, धुआँ ही धुआँ…
पानी
बादल बादल सन्नाटा है, नदी नदी वीरानी
पानी, पानी, पानी…
आँखों आँखों प्यास लिखी है, कौन कहानी बांचे,
सावन ने सन्यास ले लिया, मोर कहाँ से नाचे…
जोगी झरने, विधवा झीलें, दुश्मन बरखा रानी
पानी, पानी, पानी…
पनघट पनघट छाती पीटे, रोये गागर गागर
हांफ रहा है, पंख पसारे, गर्म रेत का सागर…
पुरवाई के नर्म परों पर, धूप की है निगरानी
पानी, पानी, पानी…
आँखों से भी रूठ चुकी है अब तो बूंदा बांदी,
पानी बाबा जाने किस दिन आएँगे लेकर चांदी..
कब तक मेरे देस में होगी सूरज की मनमानी
पानी, पानी, पानी…
फ़सलें खाली हाथ खड़ी हैं, पाँव जले मौसम के
अब तो किरपा करो राम जी, घन घन बरसो जम के,
धरती मां की मोरी चुनरिया, होगी अब तो धानी
पानी, पानी, पानी…