रामकली- गुरू गोबिन्द सिंह जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Gobind Singh Ji
रे मन इहि बिधि जोगु कमाओ ॥
सिंङी साच अकपट कंठला धिआन बिभूत चड़्हाओ ॥१॥ रहाउ ॥
ताती गहु आतम बसि कर की भि्छा नाम अधारं ॥
उघटै तान तरंग रंगि अति गयान गीत बंधानं ॥
चकि चकि रहे देव दानव मुनि छकि छकि बयोम बिवानं ॥२॥
आतम उपदेश भेसु संजम को जापु सु अजपा जापे ॥
सदा रहै कंचन सी काया काल न कबहूं बयापे ॥३॥२॥
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