रत्नम गीता सार- कविता -मनोहर लाल ‘रत्नम’ सहदेव-Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Manohar Lal Ratnam Sahdev
आप चिन्ता करते हो तो व्यर्थ है।
मौत से जो डरते हो तो व्यर्थ है॥
आत्मा तो चिर अमर है जान लो।
तथ्य यह जीवन का सच्चा अर्थ है॥
भूतकाल जो गया अच्छा गया।
वर्तमान देख लो चलता भया॥
भविष्य की चिन्ता सताती है तुम्हें?
है विधाता सारी रचना रच गया॥
नयन गीले हैं, तुम्हारा क्या गया।
साथ क्या लाये, जो तुमने खो दिया॥
किस लिये पछता रहे हो तुम कहो?
जो लिया तुमने यहीं से है लिया॥
नंगे तन पैदा हुए थे खाली हाथ।
कर्म रहता है सदा मानव के साथ॥
सम्पन्नता पर मग्न तुम होते रहो?
एक दिन तुम भी चलोगे खाली हाथ॥
धारणा मन में बसा लो बस यही।
छोटा-बडा, अपना-पराया है नहीं॥
देख लेना मन की आंखों से जरा।
भूमि धन परिवार संग जाता नहीं॥
तन का क्या अभिमान करना बावरे।
कब निकल जाये यह तेरा प्राण रे॥
पांच तत्वों से बना यह तन तेरा।
होगा निश्चय यह यहां निष्प्राण रे॥
स्वंय को भगवान के अर्पण करो।
निज को अच्छे कमों से तर्पण करो॥
शोक से भय से रहोगे मुक्त तुम।
सर्वस्व ‘रत्नम’ ईश्वर को अर्पण करो॥